मिथकिय चेतना का उद्गीत: शिवा ट्राइलॉजी (Book Review)

"प्यार का विपरीत नफ़रत नहीं, नफ़रत है प्यार का ग़लत दिशा में चले जाना! प्यार का वास्तविक विपरीत उदासीनता है, जब आप सामने वाले व्यक्ति की परवाह करना छोड़ देते है।"

अमीष त्रिपाठी आज के युग के एक बेहतरीन लेखक है, जो वास्तविकता और कल्पना को जोड़, एक नये और अद्भुद स्वरूप में पेश करते है। बहुत बार कहे जाने पर, मैंने इन्ही का एक संग्रह शिव रचना त्रय (शिवा ट्राइलॉजी) पढ़ने का निर्णय किया। अपने जीवन के पहले उपन्यास को पढ़ ज़िंदगी के प्रति मेरा रवैया बदल चुका है।

‘शिवा ट्राइलॉजी’ तीन पुस्तकों का एक संग्रह है- मेलुहा के मृत्युंजय, नागाओं का रहस्य और वायुपुत्रों की शपथ। इस संग्रह में काल्पनिक शैली और उसमें भारतीय पौराणिक कथाओं का मेल, इंसान को अपने अस्तित्व पर प्रश्न उठाने को मजबूर कर देता है, यह हमें सोचने पर विवश कर देता है कि असल में हम कौन है और किससे और क्यों लड़ रहे हैं। आख़िर ज़िंदगी का आधार क्या है?! यह संग्रह हमें एक सुलझी जीवनशैली व्यतीत करने में हमारा सहायक है। चेतना को गहराई तक झकझोर देने वाले एक संग्रह का हर शब्द हमें बहुत प्रेरित करता है।

सृजन और विनाश एक ही पल के दो सिरे हैं; इनके बीच जो कुछ भी है, वह जीवन है।

यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जिसको पौराणिक मायाओं ने ईश्वर बना दिया। लेखक अमीष ने पूरी कहानी को हिंदू सभ्यता को महाप्रतापी, देवों पे देव महादेव के इर्द-गिर्द स्थापित किया है, जहां उन्हें एक साधारण मनुष्य के रूप में दर्शाया गाया है, जो एक आदिवासी है और कैलाश के पास अपने गुठ के साथ रहता है। उसे नंदी, मेलुहा सेना का कप्तान, मेलुहा लेकर आता है और उसके पूरे आदिवासी गुठ को सोमरस से उपचार किया जाता है। तब उसकी गर्दन के आगे का भाग नीला पड़ जाता है। मेलुहा शहर के लोग उसे नीलकंठ घोषित कर देते हैं, जो भगवान रुद्र के बाद अगले महादेव होंगे और जो उन सूर्यवंशियों को चन्द्रवंशियों के ख़िलाफ़ अर्थार्त अच्छे को बुरे के ख़िलाफ़ विजय के लिए मार्गदर्शन देंगे।

शिव, उनकी पत्नी सति और बच्चों को पूरी दुनिया से लड़ना पड़ता है क्योंकि उन्होंने भगवान राम के सदियों से चले आ रहे पर वक्त के साथ निरर्थक हो चले, नियमों के विरुद्ध आवाज़ उठायी। जल्द ही वो समझ जाते हैं की जो दिख रहा है वह पूरा सत्य नहीं है और उन्हें त्रासदी, धोखे और व्यक्तिगत नुक़सान पर क़ाबू पानी की आवश्यकता है। क्योंकि अब मित्र दुश्मनों में तब्दील हो चुके थे और वे वास्तविक दुश्मन को पहचानने में सक्षम थे।

यह संग्रह सत्य, धर्म, अच्छे-बुरे के मध्य के युद्ध पर पाठकों का ध्यान केंद्रित करता है। तमिल, हिन्दी, अंग्रेज़ी, बंगाली सहित कुल पंद्रह भाषायों में संवाद किए गये इस संग्रह में व्यक्ति का एक प्रभावशाली दृष्टिकोण हमारे समक्ष आता है।

हमारे पथ विभिन्न हो सकते है, हमारा गंतव्य एक ही है।

सत्य को रोकना या छिपाना, झूठ बोलने से अलग है। यह उपन्यास हमें सिखाता है की जो चीज़ एक समय सबसे महत्वपूर्ण या अच्छी होती है, कुछ समय के बाद या किसी और के लिये वो प्राणघातक हो सकती है। कुछ हमेशा के लिए अच्छा हो, यह मुमकिन नहीं, एवं अति हर चीज़ की बुरी होती है।

अमीष अपने समकालीन की तुलना में पाठक को हिंदू धर्म की अवधारणा को अधिक कुशल तरीक़े से बताते है एवं पाठक के साथ बहुत अच्छी तरह से जोड़ते है- इनकी यह रचना प्रशंसनीय है।

Image: Google

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