भीगी सड़के, लबों पे तेरा ही नाम... जन्नत कहूँ या कहूँ सौहार्द, रचना चाहूँ तेरे लिए मैं पैगाम |
कितने बरस हैं बीत गए,
खड़े हो तुम अब भी शान बन कर,
जड़ों से जुड़े शहर के बीच...
जहाँ कभी नवाबों के हुआ करते थे,
अब पूरे हिंदुस्तान के हो चुके हो|
ये बरसात गुनगुनाए गीत तुम्हारा,
शौर्य, गौरव, न जाने क्या-क्या थे तुम...
अब याद धुंधली भले हो चली है,
पर आज भी बड़े शान से खड़े हो तुम,
तुम्हे देख हर बार पर, आंखे चमक और फक्र साथ चला आता है। विरासत को भूल ज़माना ज़रूर हो चला है, पर उसे देख... सुकून जो साथ है ना, उसका अलग ही मज़ा आता है।