कौन कहता है इंसानियत मर चुकी है? वो अभी भी जिंदा है।
हाँ, थोड़ी सहम गयी है, थोड़ी ठहर गयी है… पर इंसानियत, जिंदा है..।
गुस्सा आता है देख, उन लोगों को, जो बाकियों की आड़ में रोना करते है…
दूसरी तरफ वो जो बुराई देख भी आवाज़ नहीं उठाते है।
अपने लोगों के लिए कुछ करना तो चाहते है…
पर संसार की बुराई का स्तर देख, थोड़ा रुक जातें है।
याद रखना, इंसानियत मरी नही, अभी भी जिंदा है,
लोगों के दिल में बुराई ही सही, कहीं ना कहीं अच्छाई का एक टुकड़ा जिंदा है।
और एक दिन कुछ तो बदलेगा… और रावण फिर से हारेगा।
सीता को हरने वाला नही, हमारे अन्दर छिपा, बसा रावण |
इंसान को जानवर बनाने वाला, दुनिया को बुराई की ओर धकेलने वाला रावण।
जिंदा इंसान को लाश बनाने वाला रावण… हारेगा।
तब मंद सी रोशनी दिखेगी… बाहर ख़ुशी से नाचती, एक चमक के साथ सर उठाती, एक सौम्य सी आवाज़ आएगी…
मैं जिंदा हूँ, मरी नहीं, मैं जिंदा हूँ… इंसानियत जिंदा है।