बुरा हर कौम के साथ हुआ है, पर कसूर अकेले कौम का नहीं कहेंगे हम... भले ले लो केदारनाथ के मंसूर को या कश्मीरी पंडितों की ही बात को... लेलो बजरंगी भाईजान को, या पलघड के जवान को, कौमें बुरी नही हुआ करती...। मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना, कोई मुल्क नही सिखाता, गद्दारी के पग चलना... क्यों मनुष्य भूल जाया करते हैं, एक धर्म का होने से पहले, एक देशवासी होने से पहले, है वो मात्र एक इंसान... और इंसान बदल जाया करते हैं। पर, उन इंसानों के साथ, कौमें या उनका देश नही बदलता, वो रह जाता है... शायद उनके इंतज़ात में, जो समझते हैं, बुरी कोई कौम या बुरा कोई देश नही शायद बसे कुछ लोग हैं। और बुरा हर कौम के साथ होता है, चाहें पले किसी भी देश हों... कौमें बुरी नही हुआ करती, वो होते हैं बस कुछ लोग... या शायद सिर्फ एक सोच...
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